‘‘संस्कार छूत के रोग की तरह फैलते हैं’’

अच्छे तथा बुरे संस्कार संक्रमण रोग की तरह फैलते हैं जैसे भक्त के हाथ से बोये गए बीज में भी भक्ति संस्कार प्रवेश होते हैं। जो उस अन्न को खाता है, उसमें भी भक्ति की प्रेरणा होती है। यदि कोई नशा करने वाला तथा किसी प्रकार के अन्य विचारों को मन में मंथन करता हुआ हाली बीज बोता है तो उस बीज में भी उसके विचार प्रवेश होते हैं जो उस अन्न को खाने वाले को प्रभावित करते हैं।
उदाहरण :- एक बहन ने गुरू दीक्षा ले रखी थी। उसके घर पर गुरू जी आए तथा साथ में एक शिष्य भी था। उस बहन की बहन भी किसी कार्यवश उसी दिन आ गई।उसका दामाद मृत्यु को प्राप्त हो गया था। लड़की के छोटे-छोटे बच्चे थे। वह बहुत चिंतित थी। रह-रहकर विचार उठ रहे थे कि बेटी का निर्वाह कैसे होगा? बेटी तो उजड़ गई। देवर-जेठ किसी के नहीं होते। बच्चो को कौन पालेगा? हे भगवान! यह क्या बनी? कौन-से जन्म का पाप आड़े आ गया? उपदेशी बहन भोजन बनाने लगी तो उसकी बहन उसकी सहायता करने लगी। अधिक भोजन उस बहन ने बनाया जिसका दामाद मर गया था। संत-भक्त खाना खाकर सो गए। सुबह भक्त ने गुरू देव जी से कहा कि हे गुरूदेव! आज रात्रि में निंद्रा के दौरान मन बहुत दुःखी रहा। जैसे मेरा दामाद मर गया। बेटी के छोटे-छोटे बच्चे हैं। उनकी बेहद चिंता सताती रही। इनका क्या होगा? कैसे निर्वाह होगा? गुरू जी ने अपनी शिष्या से पूछा कि बेटी! रात्रि का भोजन किसने बनाया था? उसने उत्तर दिया कि मेरी छोटी बहन आई है, उसने बनाया था। संत ने पूछा कि उसको कोई कष्ट है क्या? शिष्या ने उत्तर दिया कि गुरूदेव! कष्ट तो बहुत ज्यादा है। लड़की के टे-छोटेटे बच्चे हैं। दामाद की मृत्यु हो गई है। सारा-सारा दिन मेरी बहन इसी चिंता में रहती है। दिन में कई-कई बार यह कहती रहती है कि बेटी का क्या होगा? कैसे बच्चों का पालन करेगी?
गुरू जी ने शिष्य को बताया कि उस बेटी के विचार भोजन में प्रविष्ट हुए और खाने वाले को प्रभावित किया। मेरे को भी यही परेशानी सारी रात रही थी। इसी प्रकार यदि भक्ति नाम-स्मरण या आरती या संतों की वाणी का मनन करते-करते भोजन बनाया जाए तो खाने वाले में वे सुसंस्कार अच्छी प्रेरणा करते हैं। भक्ति की रूचि बढ़ती है। कोई हाली गाने-रागनी गाता हुआ बीज बोता है या खाना बनाने वाली गाने या रागनी गाती हुई भोजन बनाती है तो उस अन्न में वे संस्कार प्रवेश हो जाते हैं। उसे खाने वाले का स्वभाव भी उसी प्रकार बकवाद करने को प्रेरित होता है जिसका परिणाम वर्तमान (1997 के आसपास) में दिखाई दे रहा है। अच्छाई में कम बुराई में अधिक सँख्या में मानव लगा है। यदि संतों की वाणी-पाठ-आरती-स्मरण करने वालों की सँख्या अधिक हो जाएगी तो वातावरण भक्तिमय हो जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति के मन में भक्त जैसे भाव उपजेंगे। उस वातावरण को बनाने के लिए घर-घर में आरती, रमैणी तथा नित्य-नियम चलना चाहिए। गुरू से दीक्षा लेकर नाम का स्मरण करना चाहिए जिससे वातावरण में भक्ति के विचारों के तत्व अधिक भर जाएंगे तथा बुरे संस्कारों वाले विचार ऊपर उठ जाएंगे। भक्ति संस्कार ऑक्सीजन जानों तथा बुरे विचार कार्बन-डाईऑक्साईड समझें। ऑक्सीजन रूपी भक्ति संस्कार के सिलेंडर के सिलेंडर खोलने पड़ेंगे यानि सद्ग्रन्थ साहिब के पाठ पर पाठ करने पड़ेंगे तथा तीनों समय की संध्या (नित्य कर्म) करने होंगे। स्मरण करना होगा। भक्ति करने वालों की सँख्या बढ़ेगी तो भक्ति के विचार भी पृथ्वी पर अधिक फैलेंगे जिनसे प्रत्येक के मन में शांति का आभास होगा। सत्संग करने किसी के घर जाते थे तो पहले दिन तो हमारा भी मन अशांत-सा हो जाता था। फिर प्रत्येक भक्त अपनी-अपनी रमैणी, सुबह के नित्य-नियम, शाम की आरती तथा स्मरण करते, फिर सत्संग सुनाता, तब उस घर से बुरे विचार (कुसंस्कार) निकल जाते। सुसंस्कारों की अधिकता होने से मन शांत होता। जब हम सत्संग या पाठ करके अगले गाँव जाने लगते थे तो पूरा परिवार रोने लग जाता था। उनको इतनी शांति संत व भक्तों के संग में मिलती थी। उन संस्कारों का प्रभाव महीनों रहता है। यदि नाम लेकर प्रतिदिन की तीनों संध्या व स्मरण परिवार के लोग करने लग जाऐं तो वह शांति सदा बनी रहती है।  जो बीड़ी-हुक्का में तमाखू (तम्बाकू) पीता है और वह बीज बोता है तो उस अन्न में भी तमाखू की वासना (सूक्ष्म तत्व) प्रवेश कर जाते हैं। उस अन्न को खाने वाले में भी तमाखू सेवन करने की प्रेरणा बन जाती है। जिस कारण से नशा तेजी से युवाओं में बढ़ रहा है। जब तक बच्चे हैं, तब तक तो पिता-चाचा-ताऊ, दादा जी के डर से तम्बाकू सेवन नहीं करते, परंतु युवा होते ही वे संस्कार प्रबल हो जाते हैं और नशे की आदत शीघ्र पड़ जाती है। मेरा उद्देश्य है कि मानव समाज से नशा तथा अन्य सर्व बुराई जड़ से समाप्त करके धरती पर स्वर्ग बनाऊँ। परमात्मा कबीर जी का कहा वचन साकार हुआ देखना चाहता हूँ। उन्हीं की प्रेरणा व शक्ति से यह नमोलल कार्य सफल हो सकता है। यह दास तथा मेरे अनुयाई सच्ची नीयत से इस मिशन की सफलता के लिए प्रयत्नशील हैं। सफलता की पूरी आशा है।

आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे।

संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।

अधिक जानकारी के लिए आप हमारी वेबसाइट पर जाएं 👇
www.jagatgururampalji.org

आध्यात्मिक ज्ञान की पुस्तक
✓जीने की राह या
✓ज्ञान गंगा
इनमें से कोई सी भी एक पुस्तक नि:शुल्क मंगवाने के लिए अभी आर्डर करें।
नोट: यह पुस्तक 25 से 30 दिन में आपके घर के पते पर पहुंचा दी जाएगी।
निःशुल्क पुस्तक आर्डर करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें 👇

https://spiritualleadersaintrampalji.com/book-order

Post a Comment

0 Comments