आज पढ़ें "संत दादू दास (Sant Dadu Ji) जी को कबीर जी ने कैसे अपनी शरण में लिया? के बारे में | Mukti Bodh | Spiritual Leader Saint Rampal Ji
श्री दादू जी को सात वर्ष की आयु में जिन्दा बाबा जी के स्वरूप में परमेश्वर जी मिले थे। (दादू पंथ की एक पुस्तक में ग्यारह वर्ष की आयु में कबीर जी का मिलना लिखा है।) उस समय कई अन्य हमउम्र बच्चे भी खेल रहे थे। परमेश्वर कबीर जी ने अपने कमण्डल (लोटे) से कुछ जल पान के पत्ते को कटोरे की तरह बनाकर पिलाया तथा प्रथम नाम देकर सत्यलोक ले गए। दादू जी तीन दिन-रात अचेत (Coma में) रहे। फिर सचेत हुए तथा कबीर जी का गुणगान किया। जो बच्चे श्री दादू जी के साथ खेल रहे थे। उन्होंने गाँव में आकर बताया कि एक बूढ़ा बाबा आया था। उसने जादू-जंत्र का जल दादू को पिलाया था। परंतु दादू जी ने बताया था कि :-
जिन मोकूं निज नाम दिया, सोई सतगुरू हमार।दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सिरजनहार।।दादू नाम कबीर की, जे कोई लेवे ओट।ताको कबहू लागै नहीं, काल वज्र की चोट।।केहरी नाम कबीर है, विषम काल गजराज।दादू भजन प्रताप से, भागै सुनत आवाज।।अब हो तेरी सब मिटे, जन्म-मरण की पीर।श्वांस-उश्वांस सुमरले, दादू नाम कबीर।।
स्पष्टीकरण :- संत मलूक दास जी तथा संत दादू दास जी को परमेश्वर संत गरीबदास जी की तरह सतलोक जाने के पश्चात् मिले थे। यह प्रकरण कबीर सागर में नहीं था, बाद में लिखा गया है।
अगम निगम बोध पृष्ठ 44(1734) पर नानक जी का शब्द है :-
वाह-वाह कबीर गुरू पूरा है।
पूरे गुरू की मैं बली जाऊँ जाका सकल जहूरा है।
अधर दुलीचे परे गुरूवन के, शिव ब्रह्मा जहाँ शूरा है।
श्वेत ध्वजा फरकत गुरूवन की, बाजत अनहद तूरा है।
पूर्ण कबीर सकल घट दरशै, हरदम हाल हजूरा है।
नाम कबीर जपै बड़भागी, नानक चरण को धूरा है।
अगम निगम बोध पृष्ठ 46 पर प्रमाण दिया है कि महादेव जी के पूज्य ईष्ट देव कबीर परमेश्वर जी हैं।
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 1134-1146 :-
गरीब, सील मांहि सर्व लोक हैं, ज्ञान ध्यान बैराग।जोग यज्ञ तप होम नेम, गंगा गया प्रयाग।।1134।।गरीब, कहाँ सुरग पाताल सब, और कहां मत्यु लोक।फिर पीछै कौं क्या रहा, जब आया संतोष।। 1135।।गरीब, बिवेक बिहंगम अचल है, आया हृदय मांहि।भक्ति मुक्ति और ज्ञान गति, फिर पीछै कछु नांहि।।1136।।गरीब, दया सर्वका मूल हैं, क्षमा छिक्या जो होय।त्रिलोकी कौं त्यार दे, नाम परमेश्वर गोय।।1137।।गरीब, दश हजार रापति बल, कामदेव महमन्त।ता शिर अंकुश शीलका, तोरत गज के दंत।।1138।।गरीब, क्रोध बली चंडाल है, बल रापति द्वादश सहंस।एक पलक में डोबिदे, अनंत कोटि जीव हंस।।1139।।गरीब, ता शिर अंकुश क्षमाका, मारै तुस तुस बीन।त्रिलोकी सें काढि दे, जै कोय साधु प्रबीन।।1140।।गरीब, लोभ सदा लहर्या रहै, त्रिलोकी में अंछ।बलरापति बीस सहंस हैं, पलक पलक प्रपंच।।1141।।गरीब, ता अंकुश संतोष है, त्रिलोकी सें काढि।काटै कोटि कटक दल, संतोष तेग बड़ बाड।।1142।।गरीब, मोह मुवासी मस्त है, बलरापति तीस सहंस।त्रिलोकी परिवार है, जहां उपजै तहां वंश।।1143।।गरीब, ता शिर अंकुश बिवेक है, पूरण करैं मुराद।त्रिलोकी की बासना, ले बिवेक सब साधि।।1144।।गरीब, सरजू सिरजनहार है, जल न्हाये क्या होय।भक्ति भली परमेश्वर की, नाम बीज दिल बोय।।1145।।गरीब, ये बैरागर छिप रहैं, हृदय कमल कै मांहि।नघ पत्थर एक ठौर हैं, बीनैं जिस बलि जांहि।।1146।।
सरलार्थ :- इन वाणियों में विशेष ज्ञान नहीं है। यह ज्ञान पहले कई अंगों में वर्णन है। इनमें बताया है कि (शील) संयम, संतोष, विवेक, दया, क्षमा आदि ये गुण इंसान में होने चाहिएँ। काम (स्त्री भोग = sex), क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार से भक्त को बचना चाहिए। इनसे बचना जीव के वश में नहीं है। साधना से बचाव होता है। साधना भी सतपुरूष कबीर जी की करने से लाभ होता है।
- काम (sex) में दस हजार हाथियों जितना बल है, समाधान शील है।
- क्रोध में बारह हजार हाथियों जितना बल है, समाधान क्षमा करना है।
- लोभ में बीस हजार हाथियों का बल है, समाधान संतोष करना है।
- मोह में तीस हजार हाथियों जितना बल है, समाधान विवेक है।
- अहंकार सर्वनाश करने वाला है। इसमें छत्तीस हजार हाथियों का बल है। समाधान आधीनी भाव करना है।
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