शहजाद खान (Shehzad Khan) जी की आपबीती, संत रामपाल जी द्वारा बताई सतभक्ति अपनाने से जीवन में आईं खुशियां

संत रामपाल जी महाराज एक ऐसा नाम जो आध्यात्मिक जगत के सच्चे संत हैं और सबसे बड़ी बात समाज सुधार के लिए प्रयत्नशील समाज सुधारक (Social reformer) हैं। संत रामपाल जी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। साथ ही, उनका ज्ञान अद्वितीय है और सबसे बड़ी बात यह है कि वे सभी पवित्र धर्मग्रंथों के अनुसार सही भक्ति विधि बताते हैं।

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सतभक्ति से लाभ प्रोग्राम द्वारा समाज के ऐसे लोगों को सामने लाया गया जो न जाने कितनी समस्याओं से जूझ रहे थे, लेकिन संत रामपाल जी महाराज द्वारा बताई गई सद्भक्ति से उनकी सभी समस्याएं खत्म हो गईं और उन्हें एक नई ज़िंदगी मिली जो आज लाखों लोगों के लिए उदाहरण हैं। तो आज हम आपको एक ऐसे ही एक व्यक्ति की कहानी से परिचित करवाएंगे जिनको संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेकर सतभक्ति करने से न केवल आध्यात्मिक लाभ बल्कि शारीरिक और आर्थिक लाभ भी मिला।

आज हम आपको बताएंगे कि कैसे एक मुस्लिम, इस्लाम छोड़ कर बना सच्चा इंसान।


"सतभक्ति से लाभ-Benefits of True Worship" की थीम इस प्रकार है


  • 1. शहजाद खान (Shehzad Khan) जी की आपबीती
  • 2. संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने की प्रेरणा
  • 3. नाम दीक्षा लेने के बाद कि जिंदगी में आये बदलाव
  • 4. नाम लेने से पहले और बाद का अनुभव
  • 5. मेरा समाज को संदेश
  • 6. सारांश


शहजाद दास (Shehjad Khan (Das)) जी की आपबीती

मेरा नाम शहजाद दास (Shehzad Das) है। संत रामपाल जी महाराज की शरण में आने से पहले मैं मोहम्मद शहजाद खान (Shehzad Khan) था। मैं एक मुस्लिम समाज से हूं। और मुझे शुरू से ही हमारे जो मुस्लिम समाज में जो मुल्ला-काज़ी और हमारे बड़े बुजुर्ग होते थे उन्होंने बस एक ही बात सिखाई थी नमाज पढ़ो, रोजे करो, बकरा ईद मनाओ, बकरे काटो, मांस खाओ कुछ भी करो लेकिन मालिक का नाम लो। मैंने मुस्लिम समाज में एक बात देखी है कि मुसलमान समाज सिवाय अल्लाह ताला के और किसी को भी नहीं मानता। यह सब मैंने मुसलमान समाज में देखा। इसके अलावा उन्होंने मुझे बताया था कि एक तहजीब की नमाज होती है जो रात को 12:00 बजे पढ़ी जाती है अगर उसको पढ़ लोगे तो आप का शबाब (शबाब यानी आपका जो फल है) वह दोगुना हो जाएगा और सुबह 4:00 बजे की नमाज जिसे हम फजर की नमाज कहते हैं अगर इस नमाज को पढ़कर आप किसी काम के लिए निकलते हो तो यूं समझ लो कि आपका वह काम तो होगा ही होगा यह सौ पर्सेंट है। मैंने लगभग यह साधना 22 साल तक करी लेकिन मुझे इन 22 सालों में एक दिन भी ऐसा नहीं हुआ कि मुझे लगा हो कि आज मुझे कुछ फायदा हुआ हो या मेरा कैरियर बन गया हो, मेरा कोई काम हो गया हो या किसी चीज में मैं परफेक्ट हो गया हूं। मुझे ऐसे किसी भी लाभ का अनुभव नहीं हुआ।


यहां तक कि मैंने ख्वाजा शरीफ की दरगाह जो अजमेर में है जिसे मोहिद्दीन चिश्ती की दरगाह बोला जाता है जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध है मैंने उसके लिए भी चादर के लिए बोला। मम्मी पापा ने बोला कि आप वहां जाओ वह सब की मुराद पूरी करते हैं तो आप की भी पूरी करेंगे। मैं वहां भी गया पर मैं जहां पर भी गया मैंने वहां पर देखा कि वहां पर एक बहुत बड़ा द्देग होता है जिसमें लोग पैसे डालते हैं कोई चांदी-सोना डाल रहा है लेकिन मेरे पास कोई पैसे नहीं थे। वहां पर क्या होता है कि लोग सिर पर टोपी डाल लेते हैं मालिक का नाम लेते हैं और एक हरे रंग का कपड़ा होता है उसके नीचे से आपको निकाला जाता है। फिर कहते हैं कि आपको शबाब मिल चुका है अब आपके लिए जन्नत के दरवाजे खुल चुके हैं। और कहते हैं कि यही जन्नत के दरवाजे हैं जो रमजान के दिनों में खोले जाते हैं।


22 साल तक मैंने यह सब कुछ किया लेकिन मुझे इन सब से कोई भी फायदा नहीं हुआ। बहुत सारी जगह पर मैं गया अलीगढ़ दरगाह, महरौली की जो दरगाह है मैं वहां पर भी गया। महरौली की दरगाह पर भी मैंने चद्दर बोली। वहां पर क्या होता है कि बाहर तो मांस कटता है और अंदर एक पत्थर होता है उसके सामने सजदा करो या उसके ऊपर चादर चढ़ा दो। सब जगह यही कहानी और हर जगह कुछ ना कुछ नया देखने को मिलता था। महरौली की दरगाह में एक बहुत बड़ी दरगाह बना रखी है एक पत्थर है उस पर चादर चढ़ा रखी है और बाहर मांस काटा जाता है। मांस के टुकड़े कर करके खिलाए जाते हैं और कहते थे कि यह बहुत बड़ा शबाब है मालिक ने मांस के लिए बोला है मालिक ने बोला था कि कुर्बानी दो। जो भी गाय, भैंस, बकरी जो भी उनके हाथ लगता था उनको काटते थे उन लोगों को खिलाते थे। मुसलमान धर्म में जो मांस बनता है वह इस प्रकार बनता है कि जैसे कोई हरी सब्जी बन रही हो। कोई बकरा काट देता है, कोई गाय काट देता है, कोई भैंस काट देता है मतलब सब कुछ वहां पर चल रहा है। वहां पर एक ही पानी के मटके में सब लोग पानी पीते हैं अगर कोई शराबी है, कोई बच्चा है, कोई कैंसर पीड़ित है या कोई नवाबी व्यक्ति है तो वह भी उसी घड़े में पानी पीता है। अगर आप उस पर प्रश्न चिन्ह उठाते हो तो आपसे कहा जाता है कि यह गलत नहीं है इससे शबाब मिलता है और एक मुसलमान दूसरे मुसलमान का झूठा खा सकता है।


इस बात से मैं इतना परेशान हो गया था कि मैं अपना मानसिक संतुलन तक खो चुका था क्योंकि मुझसे वह नहीं होता था। फिर मैंने अपने एक मौलवी साहब से पूछा क्या हम जो कर रहे हैं हम जिस रास्ते पर चल रहे हैं क्या वह सच है तो उन्होंने कहा कि हां यह बहुत अच्छा है। उन्होंने मुझसे कहा कि आप 40 दिन की जमात में जाइए। मैं 40 दिन की जमात में तो नहीं लेकिन 3 दिन की जमात में गया था। वहां पर भी मैंने वही सब देखा लोग भेड़ चाल चल रहे हैं और वहां पर मैंने एक चीज और देखी अगर वहां पर कहीं खाना बन रहा है तो लोग नमाज को छोड़कर पहले खाने की तरफ भाग कर जाते हैं। वह लोग यह नहीं देखते कि हमें भक्ति करनी है वह सिर्फ इतना देखते हैं कि हमारा पेट भरे और हम सोए। उन व्यक्तियों के लिए नमाज कोई भी अहमियत नहीं रखती। नमाज का मतलब है एक नित्य नियम। नमाज से मुझे कोई भी फायदा नहीं मिला। मेरे माता पिता ने मुझे यहां तक बोल दिया था कि तू कभी अपनी जिंदगी में कामयाब नहीं हो सकता। अपना भविष्य कभी नहीं बना सकता। मुसलमान समाज में मैंने 22 साल तक यह साधना करी लेकिन मुझे इस साधना से किसी भी प्रकार का कोई भी लाभ नहीं मिला।

प्रेरणा (संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने की)

संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने की प्रेरणा मुझे 'भक्ति सौदागर को संदेश' नामक पुस्तक पढ़कर हुई। मुसलमानों में एक बात कही जाती है कि आपको सीधा मुसलमान बना कर भेजा जाता है और मैं इस परंपरा को निभाते आ रहा था। एक दिन में ऐसे ही मेरे पापा की हॉस्पिटल में बैठा हुआ था। मेरे पिताजी का हॉस्पिटल था खान हॉस्पिटल मानेसर गुड़गांव में। तो वहां पर मुझे एक भक्ति सौदागर को संदेश नाम की किताब मिली और मैं धीरे-धीरे उस पुस्तक को पढ़ने लगा। मैंने पापा से पूछा कि पापा यह पुस्तक कहां से आई तो उन्होंने बताया कि उन्होंने यह पुस्तक बरवाला आश्रम से डाक द्वारा मंगवाई है। उस पुस्तक में मैंने देखा कि उसमें कलाम-ए-पाक की एक हेडिंग लिख रखी थी इसमें लिखा था कि वह अल्लाह ताला जिसने पानी की एक बूंद से आदमी और औरत को उत्पन्न किया और फिर इस पृथ्वी पर साहिब-ए-नस्ल से किसी का बाप, पिता, बेटा बना कर भेज दिया। उस अल्लाह ताला के बारे में जिसने आसमान और जमीन इन दोनों के बीच (दरमियान) जो कुछ भी है उसको छः दिन में बनाया और सातवें दिन तख्त पर जा विराजे। उसके बारे में किसी बाख़बर से पूछ कर देखो। उन्होंने बताया था कि सूरत फुरकान 25 आयत 52 से 59 में यह लिखा हुआ है। फिर मैंने उस चीज को नोट किया उस चीज पर गौर किया और फिर कुरान शरीफ हिंदी में ले करके आया और वे बातें मिलान करी। सारा वैसे की वैसे ही वह सब मिला तो यह सब देख कर मेरा दिमाग घूम गया।


फिर मैं सोचने लग गया कि कलाम-ए-पाक का ज्ञान एक हिंदू समाज के व्यक्ति के पास कैसे आया? फिर धीरे-धीरे मैं उस पुस्तक को दिन-रात पढ़ने लगा। एक दिन मैंने निर्णय कर लिया कि अब से मैं जब भी दुकान खोलूंगा तो पूर्ण परमात्मा संत रामपाल जी महाराज का नाम लेकर ही खोलूंगा। नया-नया हॉस्पिटल था तो मैं जब भी दुकान खोलता था तो संत रामपाल जी महाराज का नाम लेकर ही खोलता। और मैंने अंदर ही अंदर एक प्रेरणा बनाई की मालिक अभी मैं अपने पैरों पर खड़ा नहीं हूं जिस दिन मैं अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊंगा और जो मेरे माता-पिता मुझे बोलते हैं और अगर आप ही परमात्मा हो तो मालिक मुझे इतना ज्ञान दे दो कि मैं आपके पास आ सकूं। फिर धीरे-धीरे संत रामपाल जी महाराज की दया से मेरी दुकान की प्रोग्रेस होने लगी। फिर एक दिन मैं गांव में गया मैंने लोगों से कहा कि मुझे इस पते पर जाना है और उन्होंने मुझे एक मुरारी भक्त जी हैं उनका पता बताया। फिर मैं उनके पास गया तो वहां पर परमात्मा की तस्वीर देखी तब तक मुझे यह नहीं पता था कि संत रामपाल जी महाराज करौंथा छोड़कर बरवाला चले गए हैं। उन्होंने मुझसे कहा कि हम उस दिन जाएंगे फिर हम 7 नवंबर को संत रामपाल जी महाराज के आश्रम में आए और मैंने संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा ली। नाम दीक्षा लेने के बाद हम फिर संत रामपाल जी महाराज के दर्शनों के लिए गए। मैंने कहा कि मालिक मैं इतने दु:खों से उभरकर यहां पर आया हूं तो परमात्मा ने मुझसे कहा कि करोड़ों के ऊपर से तेरी मेहर हुई है और कहा कि बेटा इस भक्ति पर डटा रह और अगर मर्यादा में रहकर भक्ति करी तो जिंदगी में तू एक दिन वह मुकाम पा जाएगा जो तूने कभी सोचा भी नहीं होगा।

नाम दीक्षा लेने के बाद कि जिंदगी में आये बदलाव

संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद मेरी पूरी जिंदगी बदल गई। सबसे पहले बदलाव तो यह हुआ कि मैंने मांस खाना छोड़ दिया और मुसलमान समाज के प्रति मेरी जो सद्भावना थी मैं अल्लाह ताला को खोज रहा था वह मेरी खोज पूरी हो गई। मुसलमान समाज में सभी लोग मांस खाते हैं, बकरे काटते हैं। वह खुद तो पाप करते ही हैं साथ में लोगों के कर्म खराब कर देते हैं। लेकिन संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद मैंने मांस खाना छोड़ दिया। जो कहते थे कि अल्लाह के लिए कुर्बानी दो, अल्लाह ने मांस खाने का आदेश दिया है लेकिन मुझे यह संत रामपाल जी महाराज की शरण में आने के बाद पता लगा कि अल्लाह का ऐसा कोई आदेश नहीं था। अल्लाह के लिए कुर्बानी देने का मतलब था कि आपकी जो बुराइयां हैं आप उनको छोड़ दो। अल्लाह ताला ने कभी भी मांस खाने का आदेश नहीं दिया।

नाम लेने से पहले और बाद का अनुभव

संत रामपाल जी महाराज की शरण में आने के बाद मुझे यह अनुभव हुआ कि आज तक मैंने जो साधना करी वह शास्त्रों के विरुद्ध थी। शास्त्रों के अनुसार सही साधना संत रामपाल जी महाराज की शरण में आने के बाद मिली। कुरान शरीफ का सही ज्ञान संत रामपाल जी महाराज ने बताया है। एक बार मैं एक मौलवी साहब के पास गया उनके पास उनके 5-6 शिष्य भी बैठे हुए थे। मैंने बोला सलाम वालेकुम उन्होंने बोला वालेकुम सलाम। तो ऐसे ही दिमाग में प्रश्न बन गया और मैंने उनसे पूछा कि हम जो यह दुआ सलाम करते हैं इसका मतलब क्या होता है? उन्होंने जवाब अपने तरीके से सही दिया लेकिन मैं उससे संतुष्ट नहीं हुआ। फिर मैंने उनसे दूसरा प्रश्न किया कि आप यह बताओ कि आप कहते हो कि अल्लाह ताला बेचून है निराकार है वह दिखाई नहीं देता, तो अल्लाह ताला को पाने की कोई विधि तो होगी? उन्होंने बताया कि आप जकात निकालो। जकात का मतलब होता है कि आपके पास जो है वह अल्लाह ताला के लिए कुर्बान कर दो। उन्होंने बताया कि आप चावल में मांस बनवाओ और गरीबों में बटवा दो। मैंने उनसे कहा कि आप जो यह बोल रहे हो क्या इसका प्रमाण हमारी कुरान शरीफ में है? तो उन्होंने कहा कि इसका प्रमाण कुरान शरीफ में तो नहीं लेकिन हदीस में है।


मैने बोला कि जो आसमानी किताबें कुरान शरीफ, तौरेत, इंजील, जबूर उतरी हैं। इनके अलावा अगर मुझे कोई और पुस्तक दिखाओगे तो मैं कैसे मान लूंगा? तो उन्होंने बताया कि कुरान शरीफ में केवल अरबी भाषा है और हदीस में इसके मायने हैं तो मैंने कहा कि फिर जो कुरान शरीफ हिंदी में निकल रही है उसमें ऐसा लिखा है तो उन्होंने बताया कि हिंदी वाली कुरान शरीफ में कुछ मायने सही है और कुछ मायने गलत लिखे हुए हैं। इस तरीके से मुझे मुसलमान समाज में भी भटकाया गया। मैं और भी बहुत से लोगों से मिला लेकिन मुझे कहीं से कोई संतुष्टि नहीं मिली। संतुष्टि केवल संत रामपाल जी महाराज के तत्वज्ञान से मिली। किसी भी मुसलमान प्रवक्ता के पास ऐसा ज्ञान नहीं है। मैं खुद एक मुसलमान हूं और सभी मुसलमान भाइयों से कहना चाहता हूं कि मैंने जितनी भी नमाज पढ़ी हैं। वह अल्लाह ताला के बारे में बोलते हैं कि:


"सुभाना कल्ला हममा वा बी हमदीका बाता बारा कसमूका"

इसकी हिंदी निकाल कर देखो, आपको कहीं पर भी नहीं मिलेगा कि आप परमात्मा की प्रार्थना कर रहे हो क्योंकि यह प्रार्थना है ही नहीं आप तो आदेश दे रहे हो। मैंने हिंदी निकाल कर देखी।

"अल्हम्दुलिल्लहि रब्बिल आलमीन

अर रहमा निर रहीम

मालिकि यौमिद्दीन

इय्याक न अबुदु व इय्याका नस्तईन

इहदिनस् सिरातल मुस्तक़ीम

सिरातल लज़ीना अन अमता अलय हिम

गैरिल मग़दूबी अलय हिम् व लद दाालीन (अमीन)" 


यह प्रार्थना हम शुरू में पढ़ते थे लेकिन इसका कोई मतलब ही नहीं निकला क्योंकि इसमें कोई प्रार्थना की चीज है ही नहीं। हम तो आदेश दे रहे हैं कि ए पैगंबर तू वहां जा, ये कर, वो कर। यह प्रार्थना नहीं थी। हमें प्रार्थना करनी है। नमाज का मतलब समझना है। नमाज का मतलब जो परमात्मा बताते हैं कि अपनी अरदास लगाना, प्रार्थना करना, नित्य नियम करना है।

 

आज तक हम ने नमाज कौन से सच्चे दिल से पढ़ी? फ़जर अलग हो जाती है, जमात अलग हो जाती है, सुन्नत अलग हो जाती है। कुछ भी अलग हो जाता है लेकिन परमात्मा तो एक ही है। जब हम पैदा होते हैं तब हिंदू होते हैं और जब हमारी मुसलमानी कर दी जाती है तब हम मुसलमान हो जाते हैं ऐसा क्यों? अगर मालिक ने हमें मुसलमान ही बनाना था तो वह मालिक ऊपर से ही हमारी मुसलमानी करके भेजता। इसका कोई जवाब है? इसका किसी भी मुल्ला-काजी के पास कोई जवाब नहीं है। और ना ही कभी मोहम्मद साहब ने मांस को छुआ था। उनके 1 लाख 80 हजार शिष्य हो गए थे लेकिन उन्होंने कभी भी मांस को नहीं छुआ और ना मांस खाने के लिए बोला।

मेरी विश्व के सभी मुसलमान भाइयों से यह प्रार्थना है कि मांस खाना मतलब हम अपने बेटे के मांस को खा रहे हैं। एक मांस दूसरे मांस को खा रहा है इससे बड़ा राक्षस और कौन होगा? मेरी सभी मुसलमान भाइयों से प्रार्थना है कि मुसलमान हो तो मुसले ईमान बनो। लेकिन हमारा ईमान कहाँ है? हमारा ईमान तो कुछ है ही नहीं, आज हम मांस खाते हैं फिर तंबाकू खा लेते हैं फिर झूठ बोलते हैं लेकिन पहले मुसलमान समाज में ऐसा नहीं था। पहले अगर किसी मुसलमान व्यक्ति के ऊपर शराब भी गिर जाती थी तो जिस अंग पर शराब गिरती थी वह उस अंग को काट देता था। आज मुसलमान शराब पीते हैं। मस्जिद में शराब लेकर चले जाते हैं। कुर्बानी देते हैं, बकरे को काट देते हैं। एक साल में दो बार ईद आती है। बकरा ईद वाले दिन इतने बकरे काट दिए जाते हैं आखिर ऐसा क्या हुआ था कि बकरे की कुर्बानी दी जाती है? हजारों करोड़ों की संख्या में बकरों की कुर्बानी दी जाती है क्या इनका पाप नहीं लगता? क्या वे मालिक से प्रार्थना नहीं करते कि हमें कौन सा पाप लगा है जो हमें इस योनि में डाला गया? कोई भी इंसान हमें देखता है वह हमें काट देता है।

मुसलमान समाज एक पाक समाज है वह सिवाय अल्लाह ताला के किसी को नहीं मानता लेकिन आज का मुसलमान समाज मुल्ला-काजियों द्वारा भ्रमित है। आज मुसलमान समाज क्या कर रहा है ख्वाजा मोहिद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जाते हैं और वहां पर पत्थर की पूजा करते हैं और फिर कहते हैं कि हम पत्थर की पूजा नहीं करते। और कहते हैं कि हम सिवाय अल्लाह ताला के किसी की पूजा नहीं करते। ख्वाजा मोहिद्दीन की दरगाह, सैयद, पीर, महरौली की दरगाह, अलीगढ़ की दरगाह फिर यहाँ पर होता क्या है? क्या वह बंदा है? क्या वह पीर है? नहीं! उन्होंने तो कहा था कि उस अल्लाह ताला के बारे में सोचो। मेरी सभी मुसलमान भाइयों से प्रार्थना है कि अल्लाह ताला के बारे में सोचो जिसके बारे में कुरान शरीफ़ में लिखा। अल्लाह ताला कबीर है और उस कबीर के लिये कुरान शरीफ की दलीलों से तू जिहाद कर लड़ाई मत कर। यह काल का जाल है जिसको आप नहीं समझ सकते। जिब्राहिल-ए-सलाम फरिश्ता जो कुरान शरीफ की आयतों को लेकर मोहम्मद साहब के पास आया था। मोहम्मद साहब ने कहा था कि मैं अनपढ़ हूं मुझे पढ़ना नहीं आता लेकिन जबरदस्ती करके उनसे वह पढ़वाया और उनसे कहा कि नीचे जाकर मेरा ईमान फैलाओ और उन्होंने ऐसा ईमान फैलाया कि जिससे हम आज तक बाहर नहीं निकल पाए।

मेरे पिताजी जिनकी हालत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी उनके फेफड़े गल गए थे तब मैंने उनसे कहा कि अब कहां गया आपका खुदा? वह रोजे भी रखते थे नमाज भी पढ़ते थे लेकिन उस दु:ख के समय में वह कुछ काम नहीं आया। तब उन्होंने संत रामपाल जी महाराज से प्रार्थना करी कि मैं जन्मजात नाम ले लूंगा मेरी यह बीमारी ठीक कर दो। मेरे पूरे घरवालों ने यहाँ तक कि डॉक्टरों ने भी बोल दिया था कि अब यह जीवित नहीं रह सकता। लेकिन संत रामपाल जी महाराज की दया से मेरे पिताजी जीवित हो गए और उनकी बीमारी ठीक हो गई। परमात्मा के नाम में इतनी शक्ति है कि आप बिना नाम उपदेश लिए अगर सच्चे दिल से परमात्मा को याद करते हो तो परमात्मा आपके सारे दु:ख ठीक कर देता है। अगर आप अब भी परमात्मा को नहीं पहचान रहे तो फिर कब पहचानोगे? 

जब मैंने संत रामपाल जी महाराज से नाम उपदेश नहीं लिया था उससे पहले मैं अपने मम्मी पापा से पूछा करता था कि वह अल्लाह ताला कौन है जिसने इस पूरी सृष्टि को बनाया जिसने एक बूंद की समुंदर से आदमी और औरत को बनाया? मैंने आदम और हव्वा के बारे में भी सुना था कि परमेश्वर ने आदम को बनाया, फिर एक हड्डी से हव्वा को बनाया और ऐसे सृष्टि चली। फिर मैंने कहा कि अगर आदम को अल्लाह ने बनाया तो अल्लाह भी तो होगा? तो उन्होंने कहा कि आप कुरान शरीफ को पढ़ो। अब मैंने संत रामपाल जी महाराज की शरण में आने के बाद तहेदिल से तीन बार कलाम-ए-पाक को पढ़ा है। तब मुझे एक-एक चीज के बारे में पता लगा। जिसमें एक बात लिखी है कि शुरू करता हूं उस अल्लाह ताला के नाम से जो सबसे बड़ा है और वह अपने बंदे के गुनाहों को माफ करने वाला है। कुरान शरीफ, सूरत फुरकान 25 आयत 52 से 59 में कबीर परमात्मा को बड़ा बोला गया है। मैंने बहुत से मुल्ला-काजियों से पूछा है कि कबीर का अर्थ क्या है? उन्होंने बताया कि 'कबीर गुनाह' है। कौन सा गुनाह है, पाप का है या छोरी का है, कौन सा गुनाह है? उन्होंने कहा कि कबीर गुनाह है जिसकी कोई माफी नहीं हो सकती। यह उनका अज्ञान है सबको भ्रमित किया हुआ है। असली ज्ञान तो यह था कि वह कबीर ही परमात्मा है, कबीर ही अल्लाह है। 

हजरत मोहम्मद साहब को भी कबीर परमात्मा जिंदा बाबा के रूप में मिले थे। जब मोहम्मद जी ने जिंदा गाय को मार दिया था लेकिन फिर उनसे वह गाय जीवित नहीं हुई और वह गुफा के अंदर चले गए और बहुत जोर जोर से रोये और बोले अल्लाह हू कबीर, अल्लाह हू कबीर। फिर परमात्मा अल्लाह सूक्ष्म रूप बनाकर वहां पर आए और उन्होंने कहा कि जा हजरत तेरी गाय जीवित कर दी है। उस दिन से हजरत मोहम्मद साहब की महिमा बनी। जिस दिन गाय को काटा गया था उस दिन को इन मुसलमान भाइयों ने लिख लिया और उसी दिन से यह जीव हत्या की परंपरा चल पड़ी। अगर आपको मेरी बातों पर यकीन नहीं होता तो आप अपने मुल्ला-काजियों से जाकर पूछो कि रमजान के दिनों में जो 4 पुस्तकें उतरी थी। और अगर मोहम्मद साहब इतने प्यारे थे तो उनकी मौत इतनी दुर्गति से क्यों हुई? अपने मुल्ला-काजियों से जाकर पूछो। सारा ज्ञान खंगालो अगर फिर भी संतुष्टि नहीं होती है तो आप यहां बरवाला आश्रम में आओ और आपको यहाँ सभी प्रश्नों के जबाब सन्तुष्टि के साथ दिया जाएगा। आपको बिल्कुल संतुष्ट किया जाएगा। हमारी जाति "मानव जाति" है। हमारा हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई से कोई लेना देना नहीं है अगर आप इस जाति प्रथा में चलते रहे तो आप कभी भी अल्लाह ताला की प्राप्ति नहीं कर सकते।

अजान जो हम लगाते हैं अजान का मतलब ही क्या होता है?

'अश्हदु अल्ला इला-ह इल्लल्लाह, अशहदु अल्ला इला-ह इल्लल्लाह

अश्हदु अन-न मुहम्मदर्रसूलुल्लाह। अश्हदु अन-न मुहम्मदर्रसूलुल्लाह।

हय-य अलस्सलाह। हय-य अलस्सलाह।

हय-य अलल फलाह। हय-य अलल फलाह।

अल्लाहु अकबर। अल्लाहु अकबर।

ला इला-ह इल्लल्लाह

असिस्लातु खैरुम्मिनन्नौम, अस्सलातु खैरुम्मिन्नौस।’

इसका मतलब हमें आज तक नहीं पता लगा। बस सब लोग भेड़ चाल चल रहे हैं। एक के पीछे एक और अगर कोई सही रास्ता बताता है तो लोग उसकी सुनते नहीं। कहते हैं कि हमारे बड़े बुजुर्ग इसी परंपरा को निभाते आए हैं। तो अब समय है सही साधना करने का। भेड़ चाल चलने से मुक्ति नहीं होगी। मुक्ति तो सतभक्ति से ही होगी और वर्तमान में वह केवल बाख़बर संत रामपाल जी महाराज जी के पास है।


मेरा समाज को संदेश

मेरी विश्व के सभी मुस्लिम भाइयों से प्रार्थना है कि समय रहते इस ज्ञान को समझ लो। अभी समय है संत रामपाल जी महाराज के तत्व ज्ञान को समझो क्योंकि परमात्मा की वाणी है कि 

"गरीबदास यह वक्त जात है, रोवोगे इस पहरे नूँ।"

यह हकीकत बात है आज आप जितना लेट यहां आओगे तो आपके हाथ कुछ नहीं लगेगा रोने के सिवाय। कुरान शरीफ में कहीं पर भी बकरे की कुर्बानी नहीं है। वहां पर कुर्बानी लिखी है कुर्बानी का मतलब है कि अल्लाह ताला की राहों में अपनी बुराइयों को कुर्बान कर देना, उनको छोड़ देना ना की बकरे को काट देना, मुर्गे को काट देना। हम ईद पर जितननी भी कुर्बानी देते हैं उसके पाप हमारे पास इकट्ठे हो रहे हैं। कलमा पढ़ कर बकरे की कुर्बानी देना बहुत बड़ा पाप है, बहुत बड़ा हराम है। अगर मुल्ला-काजियों ने यह बात पहले बता दी होती तो इतने बड़े पाप नहीं होते। इन्हीं की वजह से आज मुसलमान समाज में मुसलमान शुरू से ही मांस खाने लग जाता है। परमात्मा ने हमें यहां भेजा था तो कुछ नियम बनाकर भेजे थे और अगर हम परमात्मा के नियमों को तोड़ते हैं तो हम सीधा शैतान के पास जाते है। नरक (दोजख/जहन्नुम) में जाएंगे। अल्लाह कबीर है और उस अल्लाह का ज्ञान वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज के अलावा और किसी के पास भी नहीं है। अगर मुल्ला-काजियों को थोड़ा सा भी ज्ञान था तो उन्होंने क्यों नहीं बताया कि कुरान शरीफ में यह कहा है कि उस अल्लाह की खबर किसी बाख़बर से पूछो। यह मानुष जन्म दुर्लभ है समय रहते इसका सदुपयोग कर लो। बाद में पछतावे के अलावा कुछ नहीं मिलेगा।

आज आप पढ़े लिखे हो अपनी पवित्र पुस्तकों को पढ़कर देखो। उनमें सब कुछ लिखा है आपको वहां बहुत कुछ मिलेगा। वह अल्लाह ताला साकार है, कण-कण में समाया हुआ है। हमारी कुरान शरीफ में लिखा है कि उस अल्लाह ताला ने 6 दिन में सृष्टि की रचना की और सातवें दिन तख़्त पर जा विराजा। उस अल्लाह ताला की खबर किसी बाख़बर से पूछ कर तो देखो और वर्तमान में वह बाख़बर (तत्वदर्शी) संत रामपाल जी महाराज हैं। आप पवित्र क़ुरआन शरीफ़ को खोल कर देखो उसमें स्पष्ट लिखा है कि वह अल्लाह ताला कबीर है। वह सातवें आसमान पर बैठा है। हम सब उसी की आत्माएं हैं यह पूरा संसार उसी की आत्मा हैं। और हमारा मोक्ष केवल शास्त्रों के अनुसार करी हुई सतभक्ति से ही हो सकता है और सतभक्ति के लिये आपको तत्वदर्शी संत की तलाश करनी पड़ेगी। उस तत्वदर्शी संत के द्वारा बताई गई सतभक्ति करने से आप उस अल्लाह ताला के पास जा सकते हैं। तत्वदर्शी संत के द्वारा बताई गई सतभक्ति से ही आत्मा की मुक्ति संभव है।

और वर्तमान में वह तत्वदर्शी संत, संत रामपाल जी महाराज हैं। अल्लाह ताला के भेजे हुए नुमाइंदे हैं। अल्लाह ताला के फरिश्ते हैं। इनके द्वारा बताई गई सद्भक्ति को अगर आप पूरी तड़प के साथ करोगे तो अब वास्तव में उस जन्नत में चले जाओगे जहां पर वह अल्लाह ताला विराजमान है। इस काल के लोक में सभी के ऊपर दु:खों का पहाड़ टूटा हुआ है और वह दु:ख केवल संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर ही समाप्त हो सकते हैं। दु:ख केवल सतभक्ति से ही समाप्त हो सकते हैं, ना कि बकरा काटने से, मांस खाने से, रोजा रखने से। इन सब का प्रमाण कुरान शरीफ या फजाईले आमाल में कहीं पर भी नहीं है। हम जीव हत्या कर रहे हैं तो उसका बहुत बड़ा पाप हमें लग रहा है। अगर वास्तव में तुम उस अल्लाह ताला को पाना चाहते हैं तो आप अपनी पवित्र पुस्तक कुरान शरीफ को खोलकर देखिए क्योंकि जब तक आप कुरान शरीफ को नहीं देखेंगे तब तक आपको उस अल्लाह को पाना बहुत मुश्किल रहेगा।

सारांश

"सतभक्ति से लाभ-Benefits by True Worship" प्रोग्राम में बताया गया कि "संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद लोगों को लाभ हो रहे हैं" पूर्णतः सत्य हैं। जिसका आप चाहें तो निरीक्षण भी कर सकते हैं। आज संत रामपाल जी महाराज जी के करोड़ोंअ नुयाई हैं और ऐसे लाखों उदाहरण हैं जिनको संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद बहुत सारे लाभ मिले हैं। 

संत रामपाल जी महाराज द्वारा बताई गई भक्ति से कैंसर, एड्स व अन्य लाइलाज बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं। क्योंकि धर्मग्रंथ ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्र 2, 5, सूक्त 162 मंत्र 5 और सूक्त 163 मंत्र 1-3 में प्रमाण है कि हर बीमारी का इलाज सतभक्ति से ही संभव है, साथ ही वह परमात्मा अपने साधक की अकाल मृत्यु तक टाल सकता है और उसे 100 वर्ष की आयु प्रदान करता है तथा उस परमात्मा की सतभक्ति से असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। संत रामपाल जी महाराज का ज्ञान पवित्र वेद, पवित्र शास्त्रों के अनुसार है और पवित्र गीता जी अध्याय 4 श्लोक 34 में जिस तत्वदर्शी संत के बारे में जिक्र आया है वह तत्वदर्शी संत कोई ओर नहीं संत रामपाल जी महाराज ही हैं। तो देर ना करते हुए आप भी संत रामपाल जी महाराज जी का ज्ञान समझे और उनसे नाम दीक्षा लेकर मोक्ष मार्ग प्राप्त करें और 84 लाख योनियों के जन्म मरण से छुटकारा पाएं।

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